जय भीम

सभी संस्कार अनित्य हैं यह मानना धम्म है। भगवान बुद्ध के अनित्यता के सिद्धांत का मतलब है कोई भी वस्तु या कोई भी प्राणी हमेशा के लिए नहीं है सबका अंत होना ही है। अनेक तत्वों से बनी हुई चीजें अनित्य है व्यक्तिगत रूप से प्राणी अनित्य है प्राणी का शरीर पृथ्वी जल अग्नि और वायु नामक चार महाभूतों से बना है जब ये चारों महाभूतों का पृथक्करण हो जाता है तब प्राणी नहीं रहता। जीवित प्राणी की अनित्यता की सवॅश्रेष्ठ व्याख्या यही है कि वह है नहीं वह हो रहा है । भगवान बुद्ध के अनित्यता का सिद्धांत यही है कि संसार का प्रत्येक पदार्थ चाहे प्राणी हो या वस्तु क्षण प्रतिक्षण बदल रहा है। इस सिद्धांत से हमें यही शिक्षा मिलती है हमें जो हर चीज से आसक्ति है उसको अनासक्ति में बदल कर कुशल कमॅ करते हुए धम्म के रास्ते पर चलना चाहिए। सबका मंगल हो सबका कल्याण हो सब सुखी हो। नमो बुद्धाय

बुद्ध

बुद्ध के पास जाकर जो लौट आए .वह गया ही नहीं. गया होगा फिर भी गया नहीं. गया होगा लेकिन पहुंचा नहीं. शरीर से गया होगा, मन से नहीं गया. जो बुद्ध के पास गया, वह गया ही, सदा को गया. वह उनका ही होकर लौटेगा. उस रंग में बिना रंगे जो लौट आए, वह गया ऐसा मानना ही मत. ——————————————————– करोड़ों लोग जापान, चीन, थाईलैंड, बर्मा, ताईवान, कोरिया और आज यूरोप व अन्य देशों में बुद्ध के मार्ग पर चल कर बुद्धत्व को उपलब्ध हुए. बुद्ध की शिक्षाओं के कारण वहां सुख और समृद्धि फैली. करोड़ों लोग भारत देश में भी बुद्धत्व को उपलब्ध हो सकते थे लेकिन यहां एक भ्रांति पकड़ गई कि बुद्ध ब्राह्मण धर्म विरोधी हैं. असल में बुद्ध उन तथाकथित ब्राह्मणों के विरोधी थे जो अपने स्वार्थ की खातिर अंधविश्वास, पाखंड व कर्मकांडों को फैला कर मानव कल्याण के मार्ग में बाधा थे. बुद्ध की परिभाषा के ब्राह्मण के विरोधी नहीं थे. सच तो यह है कि ब्राह्मणत्व का जितना महिमामंडन बुद्ध ने किया उतना किसी और ने नहीं. काश ! यह बात बुद्ध विरोधी लोग समझ पाते. काश ! यह बात यह देश समझ पाया होता तो इस देश का सबसे प्यारा बेटा इस देश से निष्कासित नहीं होता. बुद्ध ने इसी राष्ट्र में जन्म लिया .देश को बुद्ध के रूप में जो अमूल्य संपदा मिली थी वह दूसरों के हाथ न पड़ती और इस देश की खुशहाली की आधार बनती. यह अभागा देश जिसने अपने ही हाथों गौतम बुद्ध जैसे अनमोल हीरे को फेंक दिया, बुद्ध को खदेड़ दिया और उनकी वाणी से वंचित रह गया. यह अभागा देश जो बुद्ध को समझ नहीं पाया. बुद्ध के पास जा नहीं पाया और यदि गया होता तो उनका होकर रहता. आज इस देश का दृश्य कुछ और होता. ..भवतु सब्ब मंगल.. सबका कल्याण हो.. प्रस्तुति : डॉ एम एल परिहार ———————————–

🌹गुरूजी–

दान देते हुए जब हम स्वहित के लिये किसी फल की कामना करते हैं तो वह रागरंजित चित्त भवचक्र बनाने वाला होता है।
दान के फलस्वरूप लौकिक सुख-वैभव की कामना करें, मान-सम्मान की कामना करें, लाभ-सत्कार की कामना करें, स्वर्ग-अपवर्ग की कामना करें, तो इन कामनाओ से अभिभूत हुआ चित्त बंधनयुक्त ही होता है, बंधनमुक्त नही।
इस दान का फल बांधनेवाले ही होता है, खोलनेवाला नही।
🍁अतः रागरंजित चित्त से दान देना बुरा है।परंतु उससे भी बुरा है द्वेष-दूषित चित्त से दान देना। वह तो हमारे लिये और भी अनर्थ का कारण बन जाता है।उदाहरण के लिये-
1-एक भिखारी बार बार दरवाज़े पर पुकार रहा है और मै झल्ला कर पैसा देता हूँ तो उस समय मेरा चित्त क्रोध और घृणा से भरा होता है।
2-कोई चंदा मांगने आया और मेरा मन रूपये देते हुए आक्रोश से भरा है।अप्रिय चंदेवालो से शीघ्र छुटकारा पाने के लिये व्याकुल है।
3-मेरे किसी प्रतिद्वंदी ने किसी क्षेत्र में इतना दान दिया है जिससे उसकी कीर्ति बढ़ी है।इससे मेरे मन में ईर्ष्या उतपन्न हुई। उसे नीचा दिखाने के लिये अहंकार से चूर होकर उससे अधिक दान देता हूँ।
4-मेरे अन्य भाईयो ने किसी काम में दान दिया है। मुझे उसमे दान देने की जरा भी इच्छा नही है। परंतु नही दूंगा तो प्रतिषठा को धक्का लगेगा। लोक निंदा होगी। इस भय से दान देता हूँ।
🌷इस प्रकार झुंझलाहट, घृणा, भय, संकोच, ईर्ष्या, अभिमान आदि दौर्मनस्य पूर्ण चेतना से दिया डाँन केवल हितकारी ही नही होता, बल्कि अमंगल अहित का भी कारण बनता है।
🌻धर्म-चेतना से किये गए सभी कर्म मंगलकारी हैं, अधर्म चेतना से किये गए सभी कर्म अमंगलकारी हैं।
धर्मचेतना से दिये गए दान से चित्त त्याग भाव से भरा होता है। परहित परसुख के मोदभाव से भरा होता है।त्रिकालिक प्रसन्नता से भरा होता है।
🌺दान देने के पूर्व मन में ऐसे ही मोदकारी भाव जागते रहते हैं कि मै दान दूंगा! मेरे दान से कितनो का भला होगा! दान देते हुए भी मन इन मुदित भावो से ओतप्रोत रहता है कि मै दान दे रहा हूँ! गृहस्थ धर्म का पालन कर रहा हूँ! मेरे इस दान से ग्रहिता का यह हितसुख होगा! अन्य अनेको का भी यह हितसुख होगा।
दान देने के पश्चात भी मेरा मन बार बार इन शुभ भावो से उर्मिल होता रहता है।
———-
🌹गुरूजी, आपका जन्म बर्मा में हुआ। सुना है वहां पर सन्यासियो और भिक्षुओ की बड़ी अच्छी परम्परा है।
आपका क्या अनुभव है?
उत्तर- मै बरमा में जन्मा और पला।
वहां सुबह सुबह भिक्षुओ की कतार निकलती है गोचरी के लिये, तब सब की नजर नीची। नपे तुले कदमो से चल रहें हैं। मोन है, कोई बोलता नही। शांति रहती है।
कोई चिल्लाता नही–माई रोटी दे, तेरा बेटा जिये। ऐसा कुछ नही कहते।
🍁घर के सामने थोड़ी देर रुके। भिक्षा मिली तो मंगल मैत्री, न मिली तो मंगल मैत्री।
अकेला साधु है तो जहाँ उसने देखा कि मेरे खाने के लिये पर्याप्त है तो वह कोई एकांत स्थान में जाकर भोजन कर ले।अपनी आवश्यकता से अधिक भोजन नही ले।यदि समूह में है और पीछे विहार में कोई बूढ़ा भिक्षु है, बीमार भिक्षु है या अन्य किसी कारण से गोचरी के लिये नही जा सका तो उसके लिये कुछ अवशय ले जाय।
लेकिन अपने लिये भोजन की मात्रा को जाने।
🌻मधुकरी की, जरा सा यहाँ से लिया, जरा सा वहां से लिया तो किसी पर बोझ नही बना।
और जहाँ जहाँ जाए वहां मन ही मन मंगल मैत्री ही मंगल मैत्री।
तेरा मंगल हो,
तेरा कल्याण हो!
भिक्षा दे तो भी, न दे तो भी।
ऐसा व्यक्ति सही माने में भिक्षु है।
वही आचार्य बनने लायक है,
वही पूजन करने लायक है,
सम्मान सत्कार करने लायक है।
भले वह स्वयं पूजन, अर्चन, मान, सम्मान का भूखा नही है।
लेकिन वह सही आचार्य है तो शिष्य उसकी दैनिक और नैसर्गिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे, उसके स्वास्थ्य की उचित देखभाल करे।
यही ‘ पूजा व पूजनीयानं ‘ है।

🌷The merits of Dana.🌷

(Generosity-Giving-Charity.)
One should practice and develop the four brahma-vihara (sublime states of mind):
the brahma-vihara of infinite metta (loving kindness),
the brahma-vihara of infinite karuna (compassion),
the brahma-vihara of infinite mudita (sympathetic joy),
the brahma-vihara of infinite upekkha (equanimity).
There is a simple way to practice and develop the four brahma-vihara: dana (giving, generosity, charity), which is pure and beneficial in the past, present and future, and pure in three ways.
🌷 How does dana become pure in the past, present and future?
When the mind of the donor is suffused with joy and delight before giving dana,
while giving dana,
and after giving dana;
then the dana becomes pure in the past, present and future.
🌷 How does dana become pure in three ways?
When the mind of the donor is filled with benevolence;
when the receiver is living a life of pure sila;
when the dana, irrespective of amount or value, is earned by one’s own labor, honestly and through right livelihood;
then the dana is pure in three ways.
Such dana which is pure in the past, present and future, and pure in three ways, is highly beneficial.
🌷 How does such dana help to develop the four brahma-vihara?
When the thing or place or facility given as dana is not for a particular person but for the benefit of all meditators, i.e., for universal use; then this dana helps to develop the four brahma-vihara.
1) The mind of the donor is filled with infinite metta when he thinks, “Because of my dana, countless people are gaining or will gain happiness by getting this wonderful Dhamma.”
2) The donor’s mind is filled with infinite karuna when he thinks, “Because of this dana, there are so many suffering people in the world who will find a way out of their suffering, receive the benefits of Dhamma and find contentment.”
3) The donor’s mind is filled with infinite mudita with the thought, “Oh! So many people are getting happiness and contentment through the practice of Dhamma because of my dana.”
4) The donor’s mind is filled with infinite upekkha with the thought, “Whether anyone praises my dana or criticizes it, whether I succeed or fail because of this dana, is of no concern to me. My dana is not for self-praise. This dana, given with pure volition, is solely for the benefit of others.”
In this way, meditators, the four brahma-vihara are developed by giving pure dana.
🌷 Meditators!
The infinite brahma-vihara should be practiced and developed.
The practice of the infinite brahma- vihara is highly beneficial for us.

543. #पटाचारा…..✍️✍️✍️

पटाचारा…..#सावत्थि_के_बहुत_धनी_व्यापारी की एक बहुत सुंदर लड़की थी,
जब वह 16 वर्ष की हुई तो उसके माँ बाप ने,
उसे महल की सबसे ऊपर सातवीं मंजिल पर निवास कराया जो कि चारों ओर से सुरक्षा कर्मियों से घिरा रहता था
जिससे कि वह (पटाचारा) किसी भी जवान पुरुष से संपर्क न कर सके,
इन सब बचाव के बावजूद भी वह अपने घर के एक #नौकर के लड़के के साथ प्यार में पड़ गयी ।
जब उसके मातापिता ने उसकी शादी अपने जैसे धनी परिवार के जवान लड़के से तय कर दी ,
तो उसने अपने प्रेमी के साथ घर छोड़ने का फैसला किया,
और वह जवान-जोड़ा #सावत्थि से दूर एक गाम में रहने लगा ।
पति किसानी करता,
और युवा-पत्नी को घर का सारा चूल्हा-चौका करना पड़ता ,
जो कि पहले….उसके पिता के घर के नौकर करते थे,
इस प्रकार उसने अपने कर्मों को भोग किया,
जब वह गर्भवती हुई तो उसने अपने पति से मायके पहुंचाने की अनुमति मांगी ,
यह कहते हुए कि माता पिता के हदय (heart) में अपने बच्चों के लिए प्यार की एक जगह रहती ही है,
भले पहले कुछ भी घटना घटी हो,
यद्यपि उसके पति ने मना कर दिया ,
यह कहकर कि उसके माँ बाप उससे मारपीट करेंगे या जेल में डाल देंगे,
जब उसने इस वास्तविक्ता को समझा कि उसकी दलीलों (तर्कों) से उसका पति उसे नहीं जाने देगा तो उसने निर्णय किया कि स्वयं अकेली ही अपने माँ बाप के घर जाएगी।
जब पति ने उसे घर पर ना पाया और पड़ोसियों द्वारा उसके निर्णय को सुना,
तो उसने उसका पीछा किया एवं उसे मनाने का प्रयास किया कि वापस घर चले,
यद्यपि उसने पति की एक न सुनी,
सावत्थि पहुंचने के पहले ही रास्ते मे उसे गर्भ-उत्थान के दर्द होने लगे,
और जल्दी ही उसे नवजात पुत्र जन्मा,
अब जबकि उसके अपने माँ बाप के घर(सावत्थि) जाने का अन्य कोई कारण नहीं बचा था,तो वह वापस आकर पति के गांव में अपनी पारिवारिक जिन्दगी गुजारने लगीं, कुछ समय बाद वह फिर गर्भवती हुई उसने पुनः मायके जाने की प्रार्थना पति से की, इसबार भी पति ने मना कर दिया और उसने (पटाचारा) स्वनिर्णय करके अपने बड़े बच्चे को साथ लेकर चल दी, जब उसके पति ने उसका पीछा करके उससे अपने साथ घर वापस चलने की प्रार्थना की, पर वह अनसुनी कर आगे अपने रास्ते चलती गई। भयंकर तूफान आया उस शान्त ऋतु में, बिजली और गड़गड़ाहट एवं लगातार भारी बारिश के साथ, तब उसे गर्भ-उत्थान के दर्द होने लगे,और उसने पति से कहीं छत का आसरा ढूंढने को कहा। उसका पति छत के आसरे के लिए सामान इकट्ठा करने चला गया और उसने कुछ पेड़-पौधे काट लिए , परन्तु वहां पर एक #जहरीले_सांप ने उसको काट लिया और वह तुरन्त मृत्यू को प्राप्त हो गया। पटाचारा ने व्यर्थ ही पति का इंतजार किया और गर्भ-दर्द से पीड़ित उसको दूसरा नवजात-पुत्र पैदा हुआ, दोनों बच्चे उसकी छाती से चिपटकर चिल्लाने लगे क्योंकि तूफान के थपेड़े लग रहे थे। अतः माँ ने बच्चों की अपने शरीर की छाया में रात भर सुरक्षा की। सुबह होते ही उसने नवजात पुत्र को अपनी पीठ पे बांधा एवं बड़े बेटे को अपनी उंगली पकड़ाई और उस रास्ते पर, “यह कहते हुए कि आओ मेरे प्यारे-बालकों तुम्हारा बाप हमें छोड़ कर भाग गया है” ,चल पड़ी । जिस रास्ते पर उसका पति गया था, कुछ ही दूर चलकर उसे अपना पति मरा पड़ा मिला, उसका शरीर अकड़ गया था। वह उसकी मौत का जिम्मेदार स्वयं को ठहराते हुए चीख-पुकार करते हुए विलाप करने लगी। उसने अपने माँ बाप के घर जाने की यात्रा जारी रक्खी परन्तु जब वह अचिरवती-नदी पर पहुँची तो उसने देखा कि, नदी भारी बारिश के कारण कमर से ऊँचे पर आ गई थी। वह बहुत कमजोर भी हो चुकी थी जिससे कि दोनों बच्चों के साथ नदी पार नहीं कर पा रही थी, तो उसने बड़े लड़के को नदी के किनारे छोड़ नवजात बेटे को ले कर नदी पार की, जब वह वापस दूसरे बड़े बेटे को लेने नदी में वापस उतरी तो वह अभी बीच नदी में ही थी , कि एक #चील/बाज ने #नवजात_को_मांस_का_टुकड़ा समझ कर , उसको पंजों में झपट लिया और उड़ गई , जबकि पटाचारा चीखती चिल्लाती रह गयी। बड़े बेटे ने माँ को बीच धार में रुकने और चिल्लाने को देखकर उसने सोचा कि माँ उसे बुला रही है और माँ के वापस आने से पहले ही बालक नदी में उतर गया। बालक के नदी में उतरते ही, बालक तुरंत नदी की तेज धार में बह गया। जब रोती-बिलखती पटाचारा अपने माँ बाप के घर के रास्ते चली,तीन दुखद घटनाओं से पगलाई हुई,पति और दोनों बेटों को एक ही दिन में खोकर।
जैसे वह सावत्थि के निकट पहुंची,
उसे एक यात्री मिला जो अभी-अभी नगर से आ रहा था उसने उस आदमी से अपने माँ बाप के बारे में पूछा,
परन्तु शुरू में उस आदमी ने उसे कुछ भी बताने से मना किया।
पर जब उसने उसे बहुत जोर दिया तो अंततः उसने उसे बताया कि तूफान में उसके माँ बाप और भाई का घर ढह गया जिसमें वे दबकर मर गए,
और उनका अन्तिम संस्कार अभी अभी हुआ है।
जब उसने यह सुना, तो वह उसके कारणों को भूल गयी,
क्योंकि उसका दुख #सहनशीलता से अधिक था,
उसने अपने कपड़े फाड़ लिए, और रोती बिलखती यहाँ वहां भटकने लगी,
वह यह नहीं जानती समझती थी कहां जा रही !
क्या कर रही,
लोग उसे पत्थर मारते और गन्दी गालियां देते उसके पीछे जाते।
उसी समय #तथागत_बुद्ध #अनाथपिंडक के विहार जेतवन में ठहरे हुए थे,
उन्होंने पटाचारा को दूर से आते देखा और ये जाना कि पुब्बभव (previous life) में उसने धम्मचारिणी भिक्खुणी होने का सच्चा-संकप्प (firm determination ) किया था।
अतः बुद्ध ने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि वे पटाचारा को रोकें नहीं ,
बल्कि उसे प्रवेश होने दें और मेरे ( बुद्ध ) पास आने दें। जल्दी ही वह बुद्ध के नजदीक आ गयी,
बुद्ध की परमी शक्ति(attained collected devine power) के कारण पटाचारा का मन होश में आ गया।
जब वह जैसे ही सचेत हुई,
तो उसने देखा कि उसके तन पर एक भी वस्त्र नहीं है तो वह अपनी लज्जा के कारण अपना शरीर छिपाते हुए,
जमीन पर दुबक कर बैठ गयी।
एक गृहस्त ने उसके ऊपर एक लत्ता(कपड़ा) फैंका और उसने उसे अपने शरीर पर लपेट लिया,
वह बुद्ध के पैरों में गिरपड़ी,
तब उसे अपने साथ हुई दुखद घटनाये याद आई।
बुद्ध ने उसकी कहानी करुणा के साथ सुनी और उसे फिर यह समझाया कि जो दुख तूने पाए,
वे तो अनिच्चता के सागर में नन्हीं-बूंदों के समान हैं,
जिसमें सभी प्राणी डूबते (दुःख भोगते) हैं
बुद्ध ने उसे बताया कि तू अपने अनगिनत दुखो में अपने प्यारों के लिए इतने आँसू बहा चुकी है कि जो चारों महासागरों के जल से ज्यादा हैं।
हे!
स्त्री क्यों तेरे मन से मूर्छा की मैल नहीं उतरती?
बुद्ध के ऐसे-व्याख्यान पटाचारा की मन को अन्तःकरण तक भेदते चले गए ,
जिससे उस ही क्षण पटाचारा को सभी उत्पन्न वस्तुओं की अनिच्चता की पूर्णतः समझ पैदा हो गयी।
जब बुद्ध ने अपना व्याखान समाप्त किया तो पटाचारा सोत्तपन्न-अवस्था (future liberation by become a stream winner) में स्थापित हो गयी।
उसने बुद्ध के पथ का अच्छे से अभ्यास किया एवं जल्दी ही वह अरहत (final deliverance) हो गयी।
नमो बुद्धाय🙏

🌷”आर्ये-उपोसथ”🌷

“ विसाखे ! वह आर्ये-श्रावक यह विचार करता हैं –
1) “ अर्हन्त जीवनभर प्राणी-हिंसा छोड़, प्राणी-हिंसा से विरत होकर, दण्ड-त्यागी, शस्त्र-त्यागी, पाप-भीरु, दयावान, सभी प्राणियों का हित और उन पर अनुकंपा करते विचरते है |
मै भी आज की रात और यह दिन प्राणी-हिंसा छोड़, प्राणी-हिंसा से विरत होकर, दण्ड-त्यागी, शस्त्र-त्यागी, पाप-भीरु, दयावान, सभी प्राणियों का हित और उन पर अनुकंपा करते हुए विहार करूँ | इस अंश में भी मैं अर्हंतो का अनुकरण करने वाला हो जाऊंगा तथा मेरा उपोसथ पूरा होगा |
🌷 2) “ अर्हन्त जीवनभर चोरी करना छोड़, चोरी करने से विरत रह, केवल दिया ही लेने वाले, दिए की ही आकंक्षा करने वाले, चोरी न कर पवित्र जीवन बिताते है |
मैं भी आज की रात और यह दिन चोरी करना छोड़, चोरी से विरत रह , केवल दिया ही लेने वाले, दिए की ही आकंक्षा करने वाले, चोरी न कर, पवित्र जीवन बिताऊ | इस अंश में भी मैं अर्हंतो का अनुकरण करने वाला होऊंगा तथा मेरा उपोसथ पूरा होगा |
🌷 3) “ अर्हन्त जीवनभर अब्रहमचर्य छोड़, ब्रहमचारी, अनाचार-रहित, मैथुन ग्रम्ये-धर्म से विरत रहते है |
मैं भी आज की रात और यह दिन अब्रहमचर्य छोड़, ब्रहमचारी, अनाचार-रहित, मैथुन ग्रम्ये-धर्म से विरत रहकर बिताऊँ | इस अंश में भी मैं अर्हंतो का अनुकरण करने वाला होऊंगा तथा मेरा उपोसथ पूरा होगा |
🌷 4) “ अर्हन्त जीवनभर मृषावाद छोड़, मृषावाद से विरत होकर, कभी झूठ न बोलने वाले दृढ़, विश्वसनीय तथा लोक को धोखा न देने वाले होकर रहते है |
मैं भी आज की रात और यह दिन मृषावाद छोड़, मृषावाद से विरत होकर, कभी झूठ न बोलने वाले दृढ़, विश्वसनीय तथा लोक को धोखा न देने वाले होकर रहूँ | इस अंश में भी मैं अर्हंतो का अनुकरण करने वाला होऊंगा तथा मेरा उपोसथ पूरा होगा |
🌷 5) “ अर्हन्त जीवनभर सुरा-मेरय-मद्ध आदि प्रमादकारक वस्तुओ को छोड़, सुरा-मेरय-मद्ध आदि प्रमादकारक वस्तुओ से विरत होकर रहते है |
मैं भी आज की रात और यह दिन सुरा-मेरय-मद्ध आदि प्रमादकारक वस्तुओ को छोड़, सुरा-मेरय-मद्ध आदि प्रमादकारक वस्तुओ से विरत होकर रहूँ | इस अंश में भी मैं अर्हंतो का अनुकरण करने वाला होऊंगा तथा मेरा उपोसथ पूरा होगा |
🌷 6) “ अर्हन्त जीवनभर एकाहारी, रात्रि-भोजन-त्यक्त, विकाल-भोजन से विरत होकर रहते है |
मैं भी आज की रात और यह दिन एकाहारी, रात्रि-भोजन-त्यक्त, विकाल-भोजन से विरत होकर बिताऊँ | इस अंश में भी मैं अर्हंतो का अनुकरण करने वाला होऊंगा तथा मेरा उपोसथ पूरा होगा |🌷7) “ अर्हन्त जीवनभर नाचने, गाने, बजाने, तमाशे देखने, माला-गंध-विलेपन धारण-मंडन आदि जो विभूषित करने के सामान है उनसे विरत रहते है |
मैं भी आज की रात और यह दिन नाचने, गाने, बजाने, तमाशे देखने, माला-गंध-विलेपन धारण-मंडन आदि जो विभूषित करने के सामान है उनसे विरत रहकर बिताऊँ | इस अंश में भी मैं अर्हंतो का अनुकरण करने वाला होऊंगा तथा मेरा उपोसथ पूरा होगा |
🌷 8)“ अर्हन्त जीवनभर उच्च-शय्या, महा-शय्या को छोड़, उच्च-शय्या, महा-शय्या से विरत होकर, नीचा शयनासन – चारपाई या चटाई को ही काम में लाते हैं |
मैं भी आज की रात और यह दिन उच्च-शय्या, महा-शय्या को छोड़, उच्च-शय्या, महा-शय्या से विरत होकर, नीचा शयनासन – चारपाई या चटाई को ही काम में लाऊं | इस अंश में भी मैं अर्हंतो का अनुकरण करने वाला होऊंगा तथा मेरा उपोसथ पूरा होगा |🌷 The Dhamma for Householders.🌷
Dhammika Suttam.
Dhammika Upasaka, with five hundred others, visits the Buddha at Jetavana, singing his praises and asking what should be the life of a householder and that of a monk.
After laying down the course of conduct to be followed by a monk, the Buddha expounds on the virtues to be cultivated by a householder.
[1] Gahatthavattam pana vo vadami, yathakaro savako sadhu hoti. Na hesa labbha sapariggahena, phassetum yo kevalo bhikkhudhammo.
No householder can follow the Dhamma of bhikkhus completely.
Therefore I shall tell you the Dhamma of householders, the follower of which becomes a virtuous householder, a saintly person.
[2] Panam na hane na ca ghatayeyya, na canujanna hanatam paresam. Sabbesu bhutesu nidhaya dandam, ye thavara ye ca tasa santi loke.
Neither should one kill any being, nor cause the killing to be done by anyone else, nor give permission to anyone else to kill. One should give up violence towards all beings.
[3] Tato adinnam parivajjayeyya, kinci kvaci savako bujjhamano. Na haraye haratam nanujanna, sabbam adinnam parivajjayeyya.
And then the wise disciple will not take anything that is not given and anything not belonging to someone else. Neither should one steal, nor give permission to anyone else to steal. One should completely give up all kinds of stealing.
[4] Abrahmacariyam parivajjayeyya, angarakasum jalitamva vinnu. Asambhunanto pana brahmacariyam, parassa daram na atikkameyya.
The discerning person should give up sexual misconduct like a pit filled with burning coals. And if it is impossible to practice celibacy, then at least one should not have sexual relations with anyone who is not one’s spouse.
[5] Sabhaggato va parisaggato va, ekassa veko na musa bhaneyya. Na bhanaye bhanatam nanujanna, sabbam abhutam parivajjayeyya.
Having gone to a meeting or assembly, one should not lie on behalf of anyone else, nor cause anyone else to lie, nor give permission to anyone else to speak lies. One should completely give up all kinds of false speech.
[6] Majjanca panam na samacareyya, dhammam imam rocaye yo gahattho. Na payaye pivatam nanujanna, ummadanantam iti nam viditva.Understanding that alcohol produces intoxication, the householder who is desirous of living a truly virtuous life should neither drink it himself, nor give it to others to drink, nor give permission to others to drink. [7] Mada hi papani karonti bala, karenti cannepi jane pamatte. Etam apunnayatanam vivajjaye, ummadanam mohanam balakantam. Ignorant people do unwholesome deeds because of some intoxicant and cause other intoxicated people to do such deeds. One should avoid such dens of vice, which produce intoxication and delusion, and is dear to fools. [8] Panam na hane na cadinnamadiye, musa na bhase na ca majjapo siya. Abrahmacariya virameyya methuna, rattim na bhunjeyya vikalabhojanam. One should not kill other beings, nor steal, nor tell lies, nor take any intoxicant. One should abstain from sexual misconduct, sexual intercourse and from eating at the wrong time at night. [9] Malam na dhare na ca gandhamacare, mance chamayam va sayetha santhate. Etam hi atthangikamahuposatham, Buddhena dukkhantaguna pakasitam. One should neither wear garlands nor use perfume. One should sleep on a bedstead or on the ground or on a blanket/rug. This is called the atthangakamahuposatha i.e. the eight precepts, which has been expounded by the Buddha having full knowledge of dukkha. [10] Tato ca pakkhassupavassuposatham, catuddasim pancadasinca atthamim. Patihariyapakkhanca pasannamanaso, atthangupetam susamattarupam. One should practice these eight precepts in the proper manner with a pure mind on the eighth day, the fourteenth day, the full moon day, and other festival days of every lunar fortnight. [11] Tato ca pato upavutthuposatho, annena panena ca bhikkhusangham. Pasannacitto anumodamano, yatharaham samvibhajetha vinnu. Having observed the uposatha i.e. the eight precepts, the wise person, as per his/her capacity, donates food and beverages (milk, water etc.) to monks and saintly persons in the morning with a mind full of joy and devotion. [12] Dhammena matapitaro bhareyya, payojaye dhammikam so vanijjam. Etam gihi vattaya’mappamatto, sayampabhe nama upeti deveti. One should practice right livelihood and should take good care of one’s parents. The householder who is heedful and lives a virtuous life in this way is born in the world of (sayampabha) devas.

((My Old Article))

0A _ … /_
” Madhyam Marg “
The Way ,
L. Buddha himself
Followed n taught
Us, is called n
Known as the
‘Madhyam Marga’ /
“The Middle Way ” .
_______
There r different
Philosophies ..
Like in Jain philosophy :
U r not allowed 2
Kill , destroy or
Harmed even any
Micro organisms or
Any living beings !
While in Hindu philosophy ,
In the ancient time ,
Animals were used to
Killed as ‘Bali’ for
Different ” Yadhnyas
Worshiping “….
_______
This way these
Two philosophical
Views r almost
Seems n like 2
Be the 2 extremes !
_______
In this context ,
The Buddhist
Philosophy is
Well tecognized n
Established as
The “Middle Way” /
“Madhyam Marga ! “
________
And is true in all n
Every aspects of
The Buddhism !
In Buddhism all
Extremities r
Not allowed _
Anywhere !
Supposed to be _
Strictly Avoided
Everywhere !…
_______
Neither over eating
Nor over fasting is
Encouraged .
Like This
Everything should
Be Properly in a
Strict proportion ! ,
Shouldn’t be
Very high or
Very low ,
Must be in
Adequately spaced !.
_______
Emotions , behaviour ,
Feeling , looking
Towards the world ,
Response , Activities , ..
All n everything
Must be in the
Sufficient Proportion n
Suitable for the
Situation , necessity n
Requirements ..
_______
This is why in
The Buddhism
“Samyak” word is
Used everywhere .
This is called _
The Madhyam Marg !
_______
With the help of this
Proper understanding ..
It would be very easy
For u to solve the
Big problems like _
Vegetarian _
Non Vegetarian , n
So on ….
In each n
Every Case _
U may came across …..
____________________________

पढाई का महत्व हर कोई जाने ➖

#एक_दिन बाबासहाब ओर _रमाई_घर मे बैठे थे
बाबा सहाब बोले “रामू तुम को भी लिखना -पढना आना चाहिए” वह तुम पढना चाहिऐ तुमको पढना होगा यह सुनकर रमाई को थोडा अजब सा ओर परेशानी वाला लगा. वह बोली बाबा सहाब को हम जेसे महिलाओ को पढाई लिखाई करके क्या करना
है..??
तुम पढे हो उतना हि बस है…
उसपर बाबा सहाब बोले , ” रामू ! अगर तुमको लिखना -पढाना आया नहि तो कैसा चलेगा भला .उसपर .रमाई बोली.. ” आप पढते लिखते पढ रहे हो तो फिर मुझे जरुरत हि क्या है! .
अगर कुछ लिखना ओर पढना के काम पढ गया तो फिर उसपर रमाई…बोली आप हो ना…
मे नहि पढी तो कुछ फरक नहि पढने वाला है!
हमको खाना पकाना आता है बस. घर मे महिलाओ के काम है वह सब मुझे आते है!तो फिर मुझे पढाई क्या जरुरत है!
उस पर बाबा सहाब रमाई को केहते हुवे बोले ” रामू” ! समजो, मे नें तुमको पञ भेजा फिर वह पञ तुम किसके पास के पढकर लो गी……
उसपर “रमाई बोली” मुझे कोन ओर क्यु पञ लिखेगा….?
रमाई क्या पता था….?कि, भिमरावजी विदेश जाने वाले हे करके ओर ओर वहा जाकर रमाई को पञ भेजने वाले है! …….
परंतु यह बाबा सहाब समज गये थे… क्यों कि उनको अपने पिता ने कई हुई बात बार बार यह याद दी ला रहि थी!
पिता रामजी ने कहा था कि पढाई हि “जीवन मे आगे बढने का एक माञ साधन है”! उनको अपने पिता को यांनी रामजी बाबा को विदेश मे जाकर बहुत पढना लिखना था! .
” बाबा सहाब केहते थे! ” लोक बोले गे पती उच्च शिक्षित ओर उनकी पत्नी माञ अनपड उसको साधी बाराखडी भी लिखना -पढना आता नहि . यह तुम्हारा ओर मेरा अपमान नहि क्या ….?
मेरे पर अगर तुम्हारा सच्चा प्रेम हे तो फिर तुम जरुर लिखना ओर पढने कोशीश कर सिख जाओगी. अगर तुम पढना ओर लिखना सिखो गी तो तभी मेरी पत्नी केहला ओगी…..
रमाई बाबा सहाब को केहते हुवे ” सहाब ” मेरा
अपमान हुवा तो भी चलेगा पर आपका अपमान हुवा तो मुझे अच्छा नहि लगेगा. मे पढूंगी पर
बहार पाठशाला नहि जाऊंगी
आप हि मूझे लिखने ओर पढने के लिए सिका दो -आपकी बात बिलकूल सहि है …. उसपर बाबा सहाब जोर से हस पडे ओर बोले पत्नी हो तो ऐसी आज्ञा धारक
उसके बाद फिर बाबा सहाब रमाई जी को रोज पढाने लगे.
बाबा सहाब को बहुत हि आनंद हुवा
जब बाबा सहाब विदेश जाते तब रमाई को पञ भेजते रेहते थे! ,
बाबा सहाबजी पञ भेजते थे ओर वह उनका भेजा हुवा पञ रमाई को पञ पढते समय बहुत हि आनंद मिलता था!
ओर तब उन्हे असलियत मे पढाई का महत्व समज मे आया….
डाॅ. बाबा सहाब जी ने उनके गूरु गुरु राष्टपिता ज्योतीराव फुले जी का आदर्श अपने जीवन मे लिया! ..ओर हमे भी डाॅ.बाबासाहेब आंबेडकरांचा आदर्श आखो के सामने रखकर अपने घरो के महिलाओ के पढने देना जरुरी है !
” बाबा सहाब केहते है .अगर एक घर कि स्ञी अगर पढाई लिखाई करकर शिक्षित बन गई तो वह पुरे परिवार को सुधार सकती है …………………….!!
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🙏🌹जय✺भिम…जय✺रमाई🌹🙏

प्राचीन बौद्ध स्तूप……

संसार का एक अजूबा है म्यांमार के बागान शहर के हजारों प्राचीन बौद्ध स्तूप…… आज यह यूनेस्को की विश्व धरोहर है जिसे देख कर एकाएक यकीन नहीं होता कि वास्तुकला का यह अजूबा इसी धरती पर है. म्यांमार के इरावती नदी के किनारे लगभग 45 वर्ग किलोमीटर में फैले लगभग चार हजार प्राचीन विशाल बौद्ध स्तूप आज दुनिया के आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं. सन् 1044 में बागान शहर के किंग अनावृहत थे. इस दौर में थेरवाद बुद्धिज्म म्यांमार में तेजी से लोकप्रिय हो रहा था. म्यांमार के अन्य क्षेत्र थाटोन के बुद्धिस्ट किंग मनुहा ने बुद्धिज्म समझाने व अपनाने के लिए बागान के किंग अनावृहत के पास भिक्षु शिन को भेजा. किंग अनावृहत धम्म शिक्षाओं से बहुत प्रभावित हुआ लेकिन शर्त रखी कि यदि किंग मनुहा अपने राज्य में संरक्षित भगवान बुद्ध के शरीर के अवशेष व पालि भाषा के त्रिपिटक बौद्ध ग्रंथ सौंप दें तो वह बौद्ध धम्म स्वीकार कर लेगा. लेकिन किंग मनुहा ने इंकार कर दिया. फिर क्या था. किंग अनावृहत ने मनुहा के राज्य थाटोन पर आक्रमण कर जीत लिया. जीत के बाद वहां से अमूल्य बौद्ध संपदा को सैकड़ों हाथियों पर लादकर अपने राज्य में ले आए .जिनमें त्रिपिटक ग्रंथ के 32 सेट, हजारों बौद्ध वास्तु शिल्पकार और विद्वान भिक्षुओं का एक बड़ा संघ शामिल था .यही नहीं धम्म प्रचार के लिए किंग मनुहा को भी अनावृहत अपने राज्य में ले आए. बस गौरव की असली कहानी यहीं से शुरू होती है.किंग अनावृहत को बुद्ध व धम्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा पैदा हो गई और धम्म व ध्यान के प्रचार के लिए विशाल पैगोडा स्तूप बनाए जाने लगे.जिसमें विश्व विख्यात श्वेजीगोन पैगोडा प्रमुख है. उस क्षेत्र में यहां की प्रसिद्ध लकड़ी के बड़े महल, जगह जगह ध्यान केंद्र व घनी बस्तियां बसाई गई. इस प्रकार किंग के प्रोत्साहन के कारण बागान शहर धम्म का प्रमुख शहर बन गया. किंग अनावृहत के वंशजों ने भी इस परम्परा को आगे बढाते हुए11वी से 13वी सदी तक हजारों विशाल कलात्मक स्तूप बनाए. गौतम बुद्ध के परम सेवक भिक्खु आनंद के सम्मान में भी एक विशाल आनंद स्तूप बनवाया गया जिसमें भारतीय कलाकारों व मजदूरों का विशेष योगदान रहा. लेकिन इतिहास ने ऐसी करवट ली कि आज 45 किमी में फैला यह गौरवशाली पूरा क्षेत्र खंडहरों में तब्दील हो गया. तेरहवी सदी के अंत मे मंगोल शासक कुबलाई खान की बड़ी फौज ने समृद्ध बागान शहर हमला कर भारी तबाही मचाई, लूट मारकाट हुई. जनता का भारी पलायन हुआ और पूरा क्षेत्र विरान हो गया. लंबे समय उपेक्षित रहा. धीरे धीरे लकड़ी के बने महल और हजारों ध्यान केंद्र नष्ट हो गए .आज सात सौ साल बाद सिर्फ खंडहर नुमा हजारों स्तूप ही नजर आ रहे हैं जो आज भी अपने गौरवशाली इतिहास को बयां कर रहे हैं .इन्हें आज भी देखकर यह विश्वास नहीं होता कि उस काल में इतने ऊंचे विशाल कलात्मक पैगोडा बने होंगे और वह भी हजारों की संख्या में जहां से बुद्ध के मानवतावादी धम्म का उजियारा फैला होगा. बाद में ब्रिटिश सरकार के दौरान इस इलाके पर कुछ ध्यान गया और इन्हें सुरक्षित रखने के उपाय किए गए. इसके अलावा इस क्षेत्र में बार-बार भूकंप आने के कारण कई स्तूप क्षतिग्रस्त हो गए .फिर म्यांमार की राजनीतिक स्थिरता, वित्तीय संकट व आपसी क्षेत्रीय विवादों के कारण इस धरोहर पर ध्यान ही नहीं गया. आखिर 1975 में यूनेस्को, म्यांमार सरकार व उपासकों के धम्मदान द्वारा इस पूरे क्षेत्र में खंडित स्तूपों की मरम्मत करवाई गई और बाद विश्व धरोहर के रूप में घोषित किया गया. ….भवतु सब्ब मंगलं…….सबका कल्याण हो… ————————

🌷काक सुत्त🌷 The Crow

भिक्षुओ, कौवे में दस दुर्गुण (असद्धर्म) होते हैं। कौन से दस ?
वह दुस्साहसी होता है, प्रगल्भ होता है, लोभी होता है, पेटू होता है, लालची होता है, निर्दयी होता है, दुर्बल होता है, ओरवित (निम्न रुचि का) होता है, मूढ़-स्मृति होता है तथा नीच होता है।
“Bhikkhus, a crow has ten bad qualities. What ten?
It is destructive and impudent, ravenous and voracious, cruel and pitiless, weak and raucous, muddle-minded and acquisitive. A crow has these ten bad qualities.

इस प्रकार भिक्षुओ, पापी-भिक्षु में भी दस दुर्गुण(असद्धर्म) होते हैं। कौन से दस ?
वह दुस्साहसी होता है, प्रगल्भ होता है, लोभी होता है, पेटू होता है, लालची होता है, निर्दयी होता है, दुर्बल होता है, ओरवित (निम्न रुचिका) होता है, मूढ़-स्मृति होता है तथा नीच होता है। भिक्षुओ, पापी भिक्षु में ये दस दुर्गुण होते हैं।
So too, an evil bhikkhu has ten bad qualities. What ten?
He is destructive and impudent, ravenous and voracious, cruel and pitiless, weak and raucous, muddle-minded and acquisitive. An evil bhikkhu has these ten bad qualities.”

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