बुद्ध के पास जाकर जो लौट आए .वह गया ही नहीं. गया होगा फिर भी गया नहीं. गया होगा लेकिन पहुंचा नहीं. शरीर से गया होगा, मन से नहीं गया. जो बुद्ध के पास गया, वह गया ही, सदा को गया. वह उनका ही होकर लौटेगा. उस रंग में बिना रंगे जो लौट आए, वह गया ऐसा मानना ही मत. ——————————————————– करोड़ों लोग जापान, चीन, थाईलैंड, बर्मा, ताईवान, कोरिया और आज यूरोप व अन्य देशों में बुद्ध के मार्ग पर चल कर बुद्धत्व को उपलब्ध हुए. बुद्ध की शिक्षाओं के कारण वहां सुख और समृद्धि फैली. करोड़ों लोग भारत देश में भी बुद्धत्व को उपलब्ध हो सकते थे लेकिन यहां एक भ्रांति पकड़ गई कि बुद्ध ब्राह्मण धर्म विरोधी हैं. असल में बुद्ध उन तथाकथित ब्राह्मणों के विरोधी थे जो अपने स्वार्थ की खातिर अंधविश्वास, पाखंड व कर्मकांडों को फैला कर मानव कल्याण के मार्ग में बाधा थे. बुद्ध की परिभाषा के ब्राह्मण के विरोधी नहीं थे. सच तो यह है कि ब्राह्मणत्व का जितना महिमामंडन बुद्ध ने किया उतना किसी और ने नहीं. काश ! यह बात बुद्ध विरोधी लोग समझ पाते. काश ! यह बात यह देश समझ पाया होता तो इस देश का सबसे प्यारा बेटा इस देश से निष्कासित नहीं होता. बुद्ध ने इसी राष्ट्र में जन्म लिया .देश को बुद्ध के रूप में जो अमूल्य संपदा मिली थी वह दूसरों के हाथ न पड़ती और इस देश की खुशहाली की आधार बनती. यह अभागा देश जिसने अपने ही हाथों गौतम बुद्ध जैसे अनमोल हीरे को फेंक दिया, बुद्ध को खदेड़ दिया और उनकी वाणी से वंचित रह गया. यह अभागा देश जो बुद्ध को समझ नहीं पाया. बुद्ध के पास जा नहीं पाया और यदि गया होता तो उनका होकर रहता. आज इस देश का दृश्य कुछ और होता. ..भवतु सब्ब मंगल.. सबका कल्याण हो.. प्रस्तुति : डॉ एम एल परिहार ———————————–