प्राचीन बौद्ध स्तूप……

संसार का एक अजूबा है म्यांमार के बागान शहर के हजारों प्राचीन बौद्ध स्तूप…… आज यह यूनेस्को की विश्व धरोहर है जिसे देख कर एकाएक यकीन नहीं होता कि वास्तुकला का यह अजूबा इसी धरती पर है. म्यांमार के इरावती नदी के किनारे लगभग 45 वर्ग किलोमीटर में फैले लगभग चार हजार प्राचीन विशाल बौद्ध स्तूप आज दुनिया के आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं. सन् 1044 में बागान शहर के किंग अनावृहत थे. इस दौर में थेरवाद बुद्धिज्म म्यांमार में तेजी से लोकप्रिय हो रहा था. म्यांमार के अन्य क्षेत्र थाटोन के बुद्धिस्ट किंग मनुहा ने बुद्धिज्म समझाने व अपनाने के लिए बागान के किंग अनावृहत के पास भिक्षु शिन को भेजा. किंग अनावृहत धम्म शिक्षाओं से बहुत प्रभावित हुआ लेकिन शर्त रखी कि यदि किंग मनुहा अपने राज्य में संरक्षित भगवान बुद्ध के शरीर के अवशेष व पालि भाषा के त्रिपिटक बौद्ध ग्रंथ सौंप दें तो वह बौद्ध धम्म स्वीकार कर लेगा. लेकिन किंग मनुहा ने इंकार कर दिया. फिर क्या था. किंग अनावृहत ने मनुहा के राज्य थाटोन पर आक्रमण कर जीत लिया. जीत के बाद वहां से अमूल्य बौद्ध संपदा को सैकड़ों हाथियों पर लादकर अपने राज्य में ले आए .जिनमें त्रिपिटक ग्रंथ के 32 सेट, हजारों बौद्ध वास्तु शिल्पकार और विद्वान भिक्षुओं का एक बड़ा संघ शामिल था .यही नहीं धम्म प्रचार के लिए किंग मनुहा को भी अनावृहत अपने राज्य में ले आए. बस गौरव की असली कहानी यहीं से शुरू होती है.किंग अनावृहत को बुद्ध व धम्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा पैदा हो गई और धम्म व ध्यान के प्रचार के लिए विशाल पैगोडा स्तूप बनाए जाने लगे.जिसमें विश्व विख्यात श्वेजीगोन पैगोडा प्रमुख है. उस क्षेत्र में यहां की प्रसिद्ध लकड़ी के बड़े महल, जगह जगह ध्यान केंद्र व घनी बस्तियां बसाई गई. इस प्रकार किंग के प्रोत्साहन के कारण बागान शहर धम्म का प्रमुख शहर बन गया. किंग अनावृहत के वंशजों ने भी इस परम्परा को आगे बढाते हुए11वी से 13वी सदी तक हजारों विशाल कलात्मक स्तूप बनाए. गौतम बुद्ध के परम सेवक भिक्खु आनंद के सम्मान में भी एक विशाल आनंद स्तूप बनवाया गया जिसमें भारतीय कलाकारों व मजदूरों का विशेष योगदान रहा. लेकिन इतिहास ने ऐसी करवट ली कि आज 45 किमी में फैला यह गौरवशाली पूरा क्षेत्र खंडहरों में तब्दील हो गया. तेरहवी सदी के अंत मे मंगोल शासक कुबलाई खान की बड़ी फौज ने समृद्ध बागान शहर हमला कर भारी तबाही मचाई, लूट मारकाट हुई. जनता का भारी पलायन हुआ और पूरा क्षेत्र विरान हो गया. लंबे समय उपेक्षित रहा. धीरे धीरे लकड़ी के बने महल और हजारों ध्यान केंद्र नष्ट हो गए .आज सात सौ साल बाद सिर्फ खंडहर नुमा हजारों स्तूप ही नजर आ रहे हैं जो आज भी अपने गौरवशाली इतिहास को बयां कर रहे हैं .इन्हें आज भी देखकर यह विश्वास नहीं होता कि उस काल में इतने ऊंचे विशाल कलात्मक पैगोडा बने होंगे और वह भी हजारों की संख्या में जहां से बुद्ध के मानवतावादी धम्म का उजियारा फैला होगा. बाद में ब्रिटिश सरकार के दौरान इस इलाके पर कुछ ध्यान गया और इन्हें सुरक्षित रखने के उपाय किए गए. इसके अलावा इस क्षेत्र में बार-बार भूकंप आने के कारण कई स्तूप क्षतिग्रस्त हो गए .फिर म्यांमार की राजनीतिक स्थिरता, वित्तीय संकट व आपसी क्षेत्रीय विवादों के कारण इस धरोहर पर ध्यान ही नहीं गया. आखिर 1975 में यूनेस्को, म्यांमार सरकार व उपासकों के धम्मदान द्वारा इस पूरे क्षेत्र में खंडित स्तूपों की मरम्मत करवाई गई और बाद विश्व धरोहर के रूप में घोषित किया गया. ….भवतु सब्ब मंगलं…….सबका कल्याण हो… ————————

Published by All_About_Passion

https://allaboutpassionhome.wordpress.com

Leave a comment

Design a site like this with WordPress.com
Get started